۴ آذر ۱۴۰۳ |۲۲ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 24, 2024
बशीर हुसैन नजफी

हौज़ा/रोज़ा भी इस्लाम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और एक महत्वपूर्ण इबादत है। इसका मतलब है कि एक व्यक्ति अल्लाह तआला के आदेश का पालन करने के लिए सुबह सादिक़ से लेकर रात होने तक कुछ चीजों से परहेज़ करे। रमज़ान के महीने में रोज़ा रखना मुसलमानों पर फर्ज़ हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,ह़ज़रत आयतुल्लाह अल उज़मा अलह़ाज ह़ाफ़िज़ बशीर हुसैन नजफ़ी ने फरमाया,रोज़ा भी इस्लाम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और एक महत्वपूर्ण इबादत है। इसका मतलब है कि एक व्यक्ति अल्लाह तआला के आदेश का पालन करने के लिए सुबह सादिक़ से लेकर रात होने तक कुछ चीजों से परहेज़ करे।

रमज़ान के महीने में रोज़ा रखना मुसलमानों पर फर्ज़ है और यह हुक्म पवित्र कुरान की सूरह बक़रह आयत 183 में निम्नलिखित शब्दों में दिया गया है।


يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا كُتِبَ عَلَيْكُمُ الصِّيَامُ كَمَا كُتِبَ عَلَى الَّذِينَ مِن قَبْلِكُمْ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُونَ

ऐ मोमीनों ! तुम पर रोज़ा फ़र्ज़ किया गया है, जिस तरह तुम से पहले लोगों पर फ़र्ज़ किया गया था,ताकि तुम मुत्तक़ी बन जाओ। आगे की आयतों में रोज़े से संबंधित कुछ मूल नियमों की विस्तार से व्याख्या की गई है।

मिसाल के तौर पर अगर कोई शख़्स बीमार हो या रमज़ान के महीने में सफ़र पर हो तो ज़रूरी है कि बाद में रोज़ा न रख सकने वाले रोज़ों की क़ज़ा करे और जो शख़्स मुशक़्क़त के साथ रोज़ा रख सकता हो लेकिन रोज़ा न रखे तो ज़रूरी है कि हर रोज़े के बदले एक मिस्कीन को भोजन कराए। रोज़े के बहुत से  फ़ायदे हैं इससे इंसान में अल्लाह के शुक्रगुज़ार होने, सब्र करने और बुराइयों से बचने का जज़्बा पैदा होता है।

और अमीर आदमियों को रोज़ा रख कर भूख और प्यास की शिद्दत और तकलीफ़ का पता चलता है और उनके दिलों में अपने ग़रीब भाइयों की मदद करने का जज़्बा और ख़ाहिश पैदा होती है। रोज़ा मानव शरीर की आंतरिक प्रणाली में सुधार करता है और शरीर में उत्पन्न हानिकारक अपशिष्ट उत्पादों को समाप्त कर देता है।

रमज़ान का महीना बरकत वाला महीना है जिसमें पवित्र कुरान नाज़िल हुआ।इस महीने में इबादत और नेकी का सवाब आम महीनों से कहीं ज़्यादा है। लैलत-उल-क़द्र इसी महीने में आती है जिसे अल्लाह तआला ने हजार महीनों से सर्वश्रेष्ठ बताया है। ईद-उल-फितर इस धन्य महीने में रोज़ा रखके अल्लाह की आज्ञाओं के पालन के उपलक्ष्य में शव्वाल की पहली तारीख़ को मनाया जाता है।

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